Book Title: Panchpratikramansutra tatha Navsmaran
Author(s): Jain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
Publisher: Jain Sahitya Vikas Mandal

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Page 619
________________ ६०२ रोहणगिरि जिम रत्नखाण तिम, गुण सहु यामें समाया रे । महिमा मुखसें वरणत जाकी, सुरपति मन शंकाया रे॥ पूरव०॥५॥ कल्पवृक्ष सम संयमकेरी, अतिशीतल जिहाँ छाया रे । चरण करण गुण-धरण महामुनि, मधुकर मन लोभाया रे।पूरव०॥६॥ या तन विण तिहु काल कहो किन, साचा सुख निपजाया रे । अवसर पाय न चूक चिदानंद, सद्गुरु यूं दरसाया रे ॥ पूरव० ॥७॥ श्रीआनन्दघनजी कृत पद ( राग-आशावरी ) आशा औरनकी क्या कीजे, ज्ञान-सुधारस पीजे । आशा० ॥ टेक ॥ भटके द्वार द्वार लोकनके, कूकर आशाधारी। आतम-अनुभव-रसके रसिया, उतरे न कबहु खुमारी आशा० ॥१॥ आशादासी करे जे जाये, ते जन जगके दासा। आशादासी करे जे नायक, लायक अनुभव-प्यासा ॥ आशा० ॥२॥ मनसा प्याला प्रेम-मसाला, ब्रह्म-अग्नि परजाली। तन भाठी अवटाई पोये कस, जागे अनुभव लाली ।। आशा० ॥३॥ अगम पियाला पियो मतवाला, चिन्हे अध्यातम वासा ॥ आनन्दघन चेतन व्हे खेले, देखे लोक तमासा ।। आशा० ॥४॥ ( २८ ) आरतियाँ जय ! जय ! आरती आदि जिणंदा, नाभिराया मरुदेवीको नंदा......"जय ! जय ! !। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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