Book Title: Panchpratikramansutra tatha Navsmaran
Author(s): Jain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
Publisher: Jain Sahitya Vikas Mandal

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Page 617
________________ ६०० पञ्च भरतारो पांडव - नारी, द्रुपद - तनया वखाणी ए । एकसो आठे चोर पुराणा, शियल-महिमा तस जाणीए ए ॥ आदि० ॥ ६ ॥ दशरथ नृपनी नारी निरुपम, कोशल्या शियल - सलूणी राम-जनेता, पुण्यतणो कौशांबिक ठामे शतनिक नामे, तस घर घरणी मृगावती सती, कुलचन्द्रिका ए । परनालिका ए ॥ आदि० ॥ ७ ॥ राज्य करे रंग राजीओ ए । सुरभुवने जस गाजीओ ए ॥ आदि० ॥ ९ ॥ सुलसा साची शियले न काची, राची नहि विषयारसे ए । मुखडुं जोतां पाप पलाये, नाम लेतां मन उल्लसे ए ॥ आदि० ॥ ९ ॥ राम रघुवंशी तेहनी कामिनी, जनकसुता सीता सती ए । जग सहु जाणे धोज करंता, अनल शीतल थयो शियलथी ए ॥ आदि० ॥ १० ॥ काचे तांतणे चालणी बांधी, कूवा थकी जल कलङ्क उतारवा सती सुभद्राएं, चम्पा - बार हस्तिनागपुरे पाण्डुरायनो, कुन्ता पाण्डवमाता दशे दशार्हनी, व्हेन Jain Education International सुर-नर- वन्दित शियल अखण्डित, शिवा शिवपद जेहने नामे निर्मल थईए, बलिहारी तस नामनी पतिव्रता -गामिनी ए । नामनी ए । आदि० काढियुं ए । उघाडियं ए ॥ आदि० ।। ११ ।। For Private & Personal Use Only ६० ॥ १२ ॥ कामिनी ए । पद्मिनी ए ॥ आदि० ० ॥ १३ ॥ www.jainelibrary.org

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