Book Title: Panchpratikramansutra tatha Navsmaran
Author(s): Jain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
Publisher: Jain Sahitya Vikas Mandal
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पञ्च भरतारो पांडव - नारी, द्रुपद - तनया वखाणी ए । एकसो आठे चोर पुराणा, शियल-महिमा तस जाणीए ए ॥ आदि० ॥ ६ ॥
दशरथ नृपनी नारी निरुपम, कोशल्या शियल - सलूणी राम-जनेता, पुण्यतणो
कौशांबिक ठामे शतनिक नामे, तस घर घरणी मृगावती सती,
कुलचन्द्रिका ए । परनालिका ए ॥ आदि० ॥ ७ ॥
राज्य करे रंग राजीओ ए । सुरभुवने जस गाजीओ ए ॥ आदि० ॥ ९ ॥
सुलसा साची शियले न काची, राची नहि विषयारसे ए । मुखडुं जोतां पाप पलाये, नाम लेतां मन उल्लसे ए ॥ आदि० ॥ ९ ॥
राम रघुवंशी तेहनी कामिनी, जनकसुता सीता सती ए । जग सहु जाणे धोज करंता, अनल शीतल थयो शियलथी ए ॥ आदि० ॥ १० ॥
काचे तांतणे चालणी बांधी, कूवा थकी जल कलङ्क उतारवा सती सुभद्राएं, चम्पा - बार
हस्तिनागपुरे पाण्डुरायनो, कुन्ता पाण्डवमाता दशे दशार्हनी, व्हेन
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सुर-नर- वन्दित शियल अखण्डित, शिवा शिवपद जेहने नामे निर्मल थईए, बलिहारी तस
नामनी
पतिव्रता
-गामिनी ए ।
नामनी ए । आदि०
काढियुं ए । उघाडियं ए ॥
आदि० ।। ११ ।।
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६० ॥ १२ ॥
कामिनी ए ।
पद्मिनी ए ॥ आदि०
० ॥ १३ ॥
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