Book Title: Panchpratikramansutra tatha Navsmaran
Author(s): Jain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
Publisher: Jain Sahitya Vikas Mandal
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५९९
गौतम उदयो अविचल भाण, गौतम नाम जपो जगजाण ।
म्होटां मन्दिर मेरु समान, गौतम नामे सफल विहाण ॥६॥ घर मयगल-घोडानी जोड, वारु पहोंचे वंछित कोड ।
महीयल माने म्होटा राय, जो पूजे गौतमनां पाय ॥७॥ गौतम प्रणम्या पातक टले, उत्तम नरनी संगत मले।
गौतम नामे निर्मल ज्ञान, गोतम नामे वाधे वान ॥८॥ पुण्यवन्त अवधारो सहु, गुरु गौतमना गुण छे बहु ।
कहे लावण्य-समय कर जोड, गौतम तूठेसम्पत्ति क्रोड ।।९।।
- सोलह सतियोंका छन्द आदिनाथ आदे जिनवर वन्दी, सफल मनोरथ कीजिए। प्रभाते उठी मंगलिक कामे, सोले सतीनां नाम लीजिए।
आदि०॥१॥ बालकुमारी जगहितकारी, ब्राह्मी भरतनी बहेनडो ए। घट घट व्यापक अक्षर रूपे, सोले सतीमां जे वडी ए॥
आदि० ॥२॥ बाहुबल-भगिनी सतीय शिरोमणि, सुन्दर नामे ऋषभसुता ए। अंकस्वरूपी त्रिभुवन माहे, जेह अनुपम गुणजुता ए॥
आदि० ॥३॥ चन्दनबाला बालपणाथी, शियलवती शुद्ध श्राविका ए। अडदना बाकुले वीर प्रतिलाभ्या, केवल-लही व्रत-भाविका ए॥
आदि० ॥ ४॥ उग्रसेन-धुआ-धारिणी-नंदिनी, राजिमति नेम-वल्लभा ए। जोबन-वेशे कामने जीत्यो, संयम लइ देवदुल्लभा ए॥
आदि०॥५॥
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