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सुखमां समरो दुःखमां समरो, जीवतां समरो मरतां समरो,
जोगी समरे भोगो समरे, देवो समरे दानव समरे,
अड़सठ अक्षर एना जाणो, आठ सम्पदाथी परमाणो,
नवपद एनां नव निधि आपे, वीरवचनथी हृदये व्यापे,
समरो दिन ने रात । समरो सौ संघात ||
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समरो मन्त्र ।। २॥
समरे
राजा - रंक |
समरे सौ निःशंक ||
समरो मन्त्र ।। ३ ॥
तीरथ सार ।
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अड़सठ अडसिद्धि दातार ।।
समरो मन्त्र ।। ४॥ भवभवनां दुःख कापे । परमातम - पद आपे ॥ समरो मन्त्र ।। ५ ॥
( ३ )
श्री गौतमस्वामीका छन्द
वीर जिणेसर केरो शिष्य, गौतम नाम जपो निशदिस । जो कीजे गौतमनुं ध्यान, तो घर विलसे नवे निधान ॥१॥ गौतम नामे गयवर चडे, मनवांछित हेला सांपडे ।
गौतम नामे नावे रोग, गौतम नामे सर्व संयोग ॥२॥ जो वैरी विरुआ वंकड़ा, तस नामे नावे दूकडा ।
भूत-प्रेत नवि खंडे प्राण, ते गौतमना करू" वखाण ||३|| गौतम नामे निर्मल काय, गौतम नामे वाधे आय ।
गौतम जिनशासन शणगार, गौतम नामे जय जयकार ॥४॥ शाल-दाल-सुरसा-घृत - गोल, मनवांछित कापड - तंबोल । घर सुघरणी निर्मल चित्त, गौतम नामे पुत्र विनीत ||५||
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