Book Title: Panchpratikramansutra tatha Navsmaran
Author(s): Jain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
Publisher: Jain Sahitya Vikas Mandal

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Page 613
________________ हांजी जातिनो मद पहेलो कह्यो, पूर्वे हरिकेशीए कीधो रे ! चण्डाल तणे कुल उपन्यो, तपथी सवि कारज सीधो रे ! मद आठ० ॥२॥ हांजी कुलमद बीजे दाखीए, मरिची भवे कोधो प्राणी रे ! कोडाकोडी-सागर-भवमां भम्यो, मद म करो इम जाणी रे! मद आठ० ॥३॥ हांजी बलमदथी दुःख पामोआ, श्रेणिक-वसुभूति-जीवो रे ! जई भोगव्या दुःख नरकतणां, बमू पाडतां नित रीवो रे ! • मद आठ० ॥ ४॥ हांजी सनतकुमार नरेसरु, सुर आगल रूप वखाण्युं रे ! रोम-रोम काया बगड़ी गई, मद चोथा- ए टाणुं रे ! मद आठ० ॥ ५ ॥ हांजी मुनिवर संयम पालतां, तपनो मद मनमां आयो रे! थया कूरगडु ऋषिराजिया, पाम्या तपनो अन्तरायो रे ! मद आठ० ॥ ६ ॥ हांजी देश दशारणनो धणी (राय), दशार्णभद्र अभिमानी रे ! इन्द्रनी रिद्धि देखी बूझिओ, संसार तजी थयो ज्ञानी रे ! मद आठ०॥ ७ ॥ हांजी स्थूलभद्र विद्यानो कर्यो, मद सातमो जे दुःखदायो रे ! श्रुत पूरण-अर्थ न पामीओ, जुओ मानतणी अधिकाई रे ! मद आठ• ॥ ८ ॥ राय सुभूम षट्खण्डनो धणी, लाभनो मद कोधो अपार रे ! Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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