Book Title: Panchpratikramansutra tatha Navsmaran
Author(s): Jain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
Publisher: Jain Sahitya Vikas Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 625
________________ ६०८ ३३ परोपकारी बनना-दूसरोंका उपकार करना। ३४ अन्तरङ्गारिजित् बनना-काम, क्रोध, लोभ, मान, मद तथा ईर्षा इन छः अन्तरङ्ग शत्रुओंको जीतना। ३५ वशीकृतेन्द्रियग्राम होना-इन्द्रिय समह को वश करना-सर्व इन्द्रियोंको वश करनेका अभ्यास करना। __ श्रावकके २१ गुण १ अक्षुद्र, २ रूपवान, ३ शान्त प्रकृतिवान्, ४ लोकप्रिय, ५ अक्रूर, ६ पापभीरु, ७ अशठ, ८ दाक्षिण्यवान्, ९ लज्जालु, १० दयालु, ११ मध्यस्थ-सौम्यदृष्टि, १२ गुणरागी, १३ सत्कथाख्य, १४ सुपक्षयुक्त, १५ दीर्घदर्शी, १६ विशेषज्ञ, १७ वृद्धानुगामी, १८ विनयी, १९ कृतज्ञ, २० परहितार्थकारी, २१ लब्धक्षय । भावश्रावकके ६ लिङ्ग १ व्रत और कर्म करनेवाला हो, २ शीलवान् हो, ३ गुणवान् हो, ४ ऋजु व्यवहारवाला हो, ५ गुरु-शुश्रूषावाला हो और ६ प्रवचन कुशल हो। भावश्रावकके १७ लक्षण नीचे लिखी नौ वस्तुओंका सच्चा स्वरूप समझ कर उसके अनर्थसे दूर रहे : (१) स्त्री, (२) इन्द्रियाँ, (३) अर्थ (पैसा), (४) संसार, (५) विषय, (६) तीव्र आरंभ, (७) घर, (८) दर्शन, (९) गड्डलिका प्रवाह ( देखादेखी )। (१०) आगम पुरस्सर प्रवृत्ति करे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634 635 636 637 638 639 640 641 642