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ॐ ऋषभ-अजित-सम्भव-अभिनन्दन-सुमति-पद्मप्रभ-सुपार्श्व-चन्द्रप्रभ-सुविधि-शीतल-श्रेयांस - वासुपूज्यविमल-अनन्त-धर्म-शान्ति-कुन्थु-अर- मल्लि-मुनिसुव्रत -नमि-नेमि-पाव-वर्द्धमानान्ता जिनाः शान्ताः शान्तिकरा भवन्तु स्वाहा ॥४॥ शब्दार्थ
स्पष्ट है। अर्थ-सङ्कलना_____ॐ ऋषभदेव, अजितनाथ, सम्भवनाथ, अभिनन्दनस्वामी, सुमतिनाथ, पद्मप्रभ, सुपार्श्वनाथ, चन्द्रप्रभ, सुविधिनाथ, शीतलनाथ, श्रेयांसनाथ, वासुपूज्यस्वामी, विमलनाथ, अनन्तनाथ, धर्मनाथ, शान्तिनाथ, कुन्थुनाथ, अरनाथ, मल्लिनाथ, मुनिसुव्रतस्वामी, नमिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ और वर्धमानस्वामी जिनमें अन्तिम हैं, ऐसे चौबीस शान्त जिन हमें शान्ति प्रदान करनेवाले हों । स्वाहा ॥४॥
मूल
(२) ॐ मुनयो मुनिप्रवरा रिपुविजय-दुर्भिक्ष-कान्तारेषु दुर्गमार्गेषु रक्षन्तु वो नित्यं स्वाहा ॥६॥ शब्दार्थॐ-ॐ।
| रिपुविजय-दुभिक्ष-कान्तारेषुमुनयो मुनिप्रवराः - मुनियोंमें शत्रुओंद्वारा किये गये विजयश्रेष्ठ ऐसे मुनि।
___ में, दुष्कालमें (प्राण धारण
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