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शब्दार्थशान्तिः-श्रीशान्तिनाथ भगवान् । गुरु:-जगद्गुरु, जगत्को धर्मका शान्तिकरः - जगत्में शान्ति उपदश करनवाल । करनेवाले।
शान्तिः-शान्ति । श्रीमान् – ज्ञानादिक लक्ष्मीवाले,
एव-ही।
सदा-सदा। पूज्य ।
तेषां-उनके। शान्ति-शान्ति ।
येषां-जिनके । दिशतु-प्रदान करें।
शान्तिः-श्रीशान्तिनाथ । मे-मुझे।
। गृहे गृहे-घर घरमें। अर्थ-सङ्कलना
जगत्में शान्ति करनेवाले, जगत्को धर्मका उपदेश देनेवाले; पूज्य शान्तिनाथ भगवान् मुझे शान्ति प्रदान करें। जिनके घर घरमें श्रोशान्तिनाथकी पूजा होती है उनके (यहाँ) सदा शान्ति ही होती है ॥ १४ ॥
मूल
[ गाथा ] (३) उन्मृष्ट-रिष्ट-दुष्ट-ग्रह-गति-दुःस्वप्न-दुनिमित्तादि।
सम्पादित-हित-सम्पन्नाम-ग्रहणं जयति शान्तेः॥१५॥ शब्दार्थ
उन्मृष्ट - रिष्ट - दुष्ट – ग्रह
गति-दुःस्वप्न - दुनिमित्तादि - जिन्होंने उपद्रव, ग्रहों के दुष्ट प्रभाव, दुष्ट स्वप्न, दुष्ट ।
अङ्गस्फुरणरूप अपशकुन आदि निमित्तोंका नाश किया है, ऐसा। उन्मृष्ट-नाश किया है जिसने ।
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