________________
४५३
जानते, अजानते लगा हो वह सब मन-वचन-काया से मिच्छामि दुक्कडं ॥
चारित्राचार के आठ अतिचार“पणिहाणजोगजुत्तो, पंचहिं समईहिं तीहि गुत्तीहि । एस चरित्तायारो, अट्ठ विहो होइ नायव्वो" ॥४॥
ईया-समिति, भाषा-समिति, एषणा-समिति, आदानभंडमत्त-निक्षेपणा-समिति और पारिष्ठा-पनिका-समिति. मनोगुप्ति, वचन-गुप्ति और काया-गुप्ति, ये आठ प्रवचन-माता सामायिक पौषधादिक में अच्छी तरह पाली नहीं। चारित्राचार संबंधी जो कोई अतिचार पक्ष दिवस में सूक्ष्म या बादर जानते आजानते लगा हो वह सब मन, वचन, काया से मिच्छामि दुक्कडं ॥
विशेषतः श्रावक-धर्म संबंधी श्री-सम्यक्त्व मूल बारह व्रत । सम्यक्त्व के पाँच अतिचार—"संका कंख विगिच्छा" शंका :-श्री अरिहंत प्रभु के बल अतिशय ज्ञान, लक्ष्मी, गांभीर्यादि-गुण शाश्वती-प्रतिमा चरित्रवान् के चारित्र में तथा जिनेश्वर देव के वचन में संदेह किया। आकांक्षा :ब्रह्मा, विष्णु, महेश, क्षेत्रपाल, गरुड, गूगा, दिक्पाल, गोत्रदेवता, नव-ग्रह पूजा, गणेश, हनुमान, सुग्रीव, वाली, माता मसानी, आदिक तथा देश, नगर, ग्राम, गोत्र के अलग अलग देवादिकों का प्रभाव देखकर, शरीर में रोगांतिक
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org