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पत्ती पडिलेहूं ?' ऐसा कहकर मुहपत्ती पडिलेहनेकी आज्ञा माँगनी
और आज्ञा मिलनेपर 'इच्छं' कहकर मुहपत्तीकी पडिलेहणा करनी। ___ यदि आहार किया हो तो मुहपत्तीका पडिलेहण करनेके पश्चात् दो बार 'सुगुरु-वंदण' सुत्त बोलकर द्वादशावत वन्दन करना। दूसरी बार सूत्र बोलते समय 'आवस्सियाए' यह पद नहीं कहना।
फिर अवग्रहमें खड़े रहकर ' इच्छकारी भगवन् ! पसाय करी पच्चक्खाणनो आदेश देशोजी' ऐसा कहना अर्थात् उस समय गुरु हों तो वे अथवा ज्येष्ठ व्यक्ति हों तो वे 'दिवस-चरिमं' का पाठ बोलकर पच्चक्खाण कराएँ ।
यदि वैसा योग न हो तो स्वयं ही 'दिवस-चरिमं' पाठ बोलकर कर यथाशक्ति पच्चक्खाण करे और अवग्रहसे बाहर निकले।
(३) चैत्यवन्दनानि
तदनन्तर खमा० प्रणि० करके — इच्छा० चेइयवंदणं करेमि ?' ऐसा कहकर गुरुके समक्ष चैत्यवन्दन करनेकी आज्ञा माँगनी । गुरु कहें-'करेह' तब 'इच्छं' कहकर ज्येष्ठ व्यक्ति अथवा स्वयं नीचे लिखे अनुसार पाठ बोलकर चैत्यवन्दन करे।
प्रथम योगमुद्रासे मङ्गलरूप आद्य स्तुति ( चैत्यवन्दन ) करनी। फिर 'जं किंचि' सूत्र तथा 'नमो त्थु णं' सूत्रके पाठ क्रमशः बोलकर खड़े होकर 'अरिहंत चेइआणं' सूत्र तथा 'अन्नत्थ' सूत्रके पाठ बोलने । बादमें एक नमस्कारका कायोत्सर्ग करना और उसको
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