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फिर 'करेमि भंते' सूत्र ‘इच्छामि ठामि' सूत्र, 'तस्स उत्तरी' सूत्र तथा 'अन्नत्थ' सूत्र बोल कर दो लोगस्सका काउस्सग्ग किया जाता है, उसका हेतु चारित्राचारकी विशुद्धि है। यहाँ काउस्सग्ग करनेसे पूर्व जो सूत्र बोले जाते हैं, उनका अर्थ विचारनेसे चारित्रका शुद्ध स्वरूप समझमें आता है तथा उनमें कौनसी वस्तुएँ अतिचाररूप हैं, उसका स्पष्ट ध्यान आ जाता है।
बादमें 'लोग्गस्स' तथा 'सव्वलोए अरिहंत-चेइआणं' सूत्र बोलकर एक लोगस्सका काउस्सग किया जाता है, उसका हेतु दर्शनाचारको विशुद्धि है। फिर 'पुक्खरवरदीवड्ढे' तथा 'सव्वलोए अरिहंत चेइआणं' सूत्र बोलकर एक लोगस्सका काउस्सग्ग किया जाता है, उसका हेतु ज्ञानाचारकी विशुद्धि है।
फिर 'सिद्धाणं बुद्धाणं' सूत्र बोलते हैं उसका हेतु सर्व आचारका निरतिचारावस्थापूर्वक पालन करनेसे उत्कृष्ट फल प्राप्त करनेवाले सर्व सिद्धोंको वन्दन करना है। ___इस तरह चारित्राचार दर्शनाचार और ज्ञानाचारको विशुद्धिके लिये कायोत्सर्ग करनेपर, तथा सिद्ध भगवन्तोंको वन्दन करनेके बाद श्रुतदेवता और क्षेत्रदेवताके आराधनके निमित्त एक-एक नमस्कारका काउस्सग्ग किया जाता है।
९. फिर नमस्कार गिनकर,मुहपत्तीका पडिलेहण कर,द्वादशावर्त्तवन्दन किया जाता है। उसमें नमस्कारकी गणना मङ्गलके लिये को जाती है और मुहपत्तीका पडिलेहण तथा द्वादशावत-वन्दन छट्ठा 'प्रत्याख्यान' आवश्यकके निमित्त किया जाता है। लोकमें भी ऐसी
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