Book Title: Panchpratikramansutra tatha Navsmaran
Author(s): Jain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
Publisher: Jain Sahitya Vikas Mandal

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Page 607
________________ ५९० अगियार श्रावक तणी पडिमा, कही ते जिनवर देव, एकादशी एम अधिक सेवो, वनगजा जिम रेव । चोवीश जिनवर सयल-सुखकर, जेसा सुरतरु चंग, जेम गंग निर्मल नीर जेहवो, करो जिनशं रंग ॥ २॥ अगियार अंग लखावीए, अगियार पाठां सार, अगियार कवली वाटणां, ठवणी पूंजणी सार । चाबखी चंगी विविध रंगी, शास्त्रतणे अनुसार, एकादशी एम ऊजवो, जेम पामीए भवपार ॥ ३ ॥ वर-कमल-नयणी कमल-वयणी, कमल सुकोमल काय, भुजदण्ड चण्ड अखण्ड जेहने, समरतां सुख थाय । एकादशी एम मन वशी, गणी हर्ष पण्डित शिष्य शासनदेवी विघन निवारे, संघ तणां निशदिन ॥ ४ ॥ पर्युषणकी स्तुति - ( १४ ) बरस दिवसमां अषाढ-चोमासुं, तेहमां वली भादरवो मास, आठ दिवस अतिखास; पर्व पजूसण करो उल्लास, अट्ठाइधरनो करवो उपवास, पोसह लीजे गुरु पास । वड़ा कल्पनो छ? करीजे, तेह तणो वखाण सुणीजे, . चौद सुपन वांचीजे; पडवेने दिवले जन्म वंचाय, ओच्छव महोच्छव मङ्गल गवाय, वीर जिणेसर राय ॥१॥ बीजे दिने दीक्षा अधिकार, सांझ-समय निरवाण विचार, वीर तणो परिवार; Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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