Book Title: Panchpratikramansutra tatha Navsmaran
Author(s): Jain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
Publisher: Jain Sahitya Vikas Mandal

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Page 609
________________ ५९२ [१५] पर्युषणकी स्तुति पुण्यनुं पोषण पापनुं शोषण, पर्व पजूसण पामीजी, कल्प घरे पधरावो स्वामी, नारी कहे शिष नामोजी । कुंवर गयवर खन्ध चढावी, ढोल निशान वगडावोजी, सद्गुरुसंगे चढते रंगे, वीर - चरित्र सुणावोजी ॥ १ ॥ प्रथम वखाण धर्म सारथि पद, बीजे सुपनां चारजी, त्रीज सुपन पाठक बली चौथे, वीर जनम अधिकारजी । पांचमें दीक्षा छट्टे शिवपद, सातमें जिन वीशजी, आठमे पिरावली संभलावे, पिउडा पूरो जगीशजी ॥ २ ॥ छठ्ठ अठ्ठम अठ्ठाई कीजे, जिनवर चैत्य नमोजेजी, वरसी पडिक्कमणुं मुनिवन्दन संघ सकल खामीजेजी । आठ दिवस लगे अमर प्रभावनां, दान सुपात्रे दीजेजी, भद्रबाहु - गुरु वचण सुणीने ज्ञान सुधारस पीजेजी ॥ ३ ॥ तोरथमां विमलाचल गिरिमां, मेरु महीधर नेमजी, मुनिवर मांही जिनवर म्होटा, परव पजूसण तेमजी । अवसर पामी साहम्मिवच्छल, बहु पकवान वडाईजी, खीमाविजय जिनदेवी सिद्धाई, दिन दिन अधिक वधाईजी ॥ ४ ॥ ( २६ ) , Jain Education International सज्झाय ( १ ) क्रोधके विषय में कडवां फल छे क्रोधनां ज्ञानी एम बोले । सतणो रस जाणीए, हलाहल तोले-कडवां० ॥ १ ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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