Book Title: Panchpratikramansutra tatha Navsmaran
Author(s): Jain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
Publisher: Jain Sahitya Vikas Mandal

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Page 605
________________ 1 ५८८ आगम अति अनुपम, जिहां निश्चय - व्यवहार, बीजे सवि कीजे, पातकनो परिहार ॥ ३ ॥ गजगामिनी कामिनी, कमल - सुकोमल चीर, चक्रेश्वरी केसर, सरस सुगन्ध शरीर । करजोड़ी बीजे, हुं प्रणमुं तस पाय, एम लब्धिविजय कहे, पूरो मनोरथ माय ॥ ४ ॥ ( ११ ) पञ्चमीकी स्तुति श्रावण शुदि दिन पञ्चमीए, जन्म्या नेम जिणन्द तो, श्याम वरण तनु शोभतुं ए, मुख शारद को चन्द तो । सहस वरस प्रभु आउखु ए, ब्रह्मचारी भगवन्त तो, अष्ट करम हेला हणी ए, पहोता मुक्ति महन्त तो ॥ १ ॥ अष्टापद पर आदि जिन ए, पहोंता मुक्ति मोझार तो, वासुपूज्य चम्पापुरी ए, नेम मुक्ति गिरनार तो । पावापुरी नगरीमां वली ए, श्रीवीरतणुं निर्वाण तो, सम्मेत शिखर वीश सिद्ध हुआ ए, शिर बहुं तेहनी आण तो ॥ २ ॥ नेमनाथ ज्ञानी हुआ ए, जीवदया गुण- वेलडी ए, मृषा न बोलो मानवी ए, चोरी चित्त अनन्त तीर्थङ्कर एम कहे ए, परिहरीए परनार तो ॥ ३ ॥ गोमेध नामे यक्ष भलो ए, देवी श्रीअम्बिका नाम तो, शासन सान्निध्य जे करे ए, करे वली धर्मनां काम तो । तपगच्छ-नायक गुणनीलो ए, श्रीविजयसेनसूरिराय तो, ऋषभदास पाय सेवंता ए, सफल कर्यो अवतार तो ॥ ४ ॥ भाखे सार कोजे तास Jain Education International वचन तो, जतन तो । निवार तो, For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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