Book Title: Panchpratikramansutra tatha Navsmaran
Author(s): Jain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
Publisher: Jain Sahitya Vikas Mandal

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Page 604
________________ ५८७ पशु पंखी जे इण गिरि आवे, भय त्रीजे ते सिद्ध ज थावे, अजरामर पद पावे; जिन मतमा शेजुजे वखाण्यो, ते में आगम दिलमांहि आण्यो, सुणतां सुख उर ठायो ॥ ३ ॥ सघपति भरतेसर आवे, सोवन तणा प्रासाद करावे, मणिमय मूरत ठावे; नाभिराया मरुदेवी माता, ब्राह्मी-सुन्दरी व्हेन विख्याता, मूर्ति नवाणुं भ्राता। गोमुख यक्ष चक्रेश्वरी देवी, शत्रुजय सार करे नित मेवी, तपगच्छ ऊपर हेवी; श्रीविजयसेन सूरीश्वर राया, श्रीविजयदेवसूरि प्रणमी पाया, ऋषभदास गुण गाया ॥४॥ (१०) बीजकी स्तुति दिन सकल मनोहर, बीज दिवस सुविशेष, रायराणा प्रणमे, चंद्रतणी जिहां रेख । तिहां चन्द्र विमाने, शाश्वता जिनवर जेह, हुँ बीजतणे दिन, प्रणमुं आणी नेह ॥१॥ अभिनन्दन चन्दन, शीतल शीतलनाथ, अरनाथ सुमति जिन, वासुपूज्य शिवसाथ । इत्यादिक जिनवर, जन्मज्ञान-निरवाण, हूं बीजतणे दिन, प्रणमुं ते सुविहाण ॥२॥ प्रकाश्यो बीजे, दुविध धर्म भगवन्त, जेम विमल कमल होय, विपुल नयन विकसन्त । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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