Book Title: Panchpratikramansutra tatha Navsmaran
Author(s): Jain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
Publisher: Jain Sahitya Vikas Mandal
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लंछन खड्गी श्रेयांसने, वासुपूज्यने महिष । सूवर-लंछन पाये विमलदेव, ललिया ते नामो शिष ॥ ४ ॥ सिंचाणो जिन अनन्तने, वज्र-लंछन श्रीधर्म । शान्ति-लंछन मरगलो, राखे धर्मनो मर्म ॥ ५॥ कुन्थुनाथ जिन बोकड़ो, अरजिन नन्दावर्त । मल्लि कुम्भ वखाणीए, सुव्रत कच्छप विख्यात ।। ६ ॥ नमि जिनने नीलो कमल, पामीए पङ्कजमांही। शङ्ख-लंछन प्रभु नेमजी, दीसे ऊंचे आंही ॥७॥ पार्श्वनाथने चरण सर्प नीलवरण शोभित । सिंह-लंछन कंचनतनु, वर्द्धमान विख्यात ॥ ८॥ एणी परे लंछन चिन्तवी, ओलखीए जिनराय । ज्ञानविमल प्रभु सेवतां, लक्ष्मीरतन सूरिराय ॥९॥ श्रीसिद्धाचलजीका चैत्यवन्दन
(५) विमल केवलज्ञान-कमला-कलित, त्रिभुवन हितकरं । सुरराज-संस्तुत-चरणपङ्कज, नमो आदि जिनेश्वरं ॥१॥ विमल-गिरिवर-शृङ्गमण्डन, प्रवर-गुणगण-भूधरं । सुर-असुर-किन्नर-कोडि-सेवित, नमो आदि जिनेश्वरं ॥२॥ करत नाटक किन्नरी-गण, गाय जिन-गुण मनहरं । निर्जरावली नमे अहर्निश, नमो आदि जिनेश्वरं ॥३॥
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