________________
५५०
(४)
सकल - कर्मवारी, मोक्ष - मार्गाधिकारी, त्रिभुवन - उपकारी, केवलज्ञान-धारी । भविजन --नित सेवो, देव ए भक्ति-भावे,
एही ज जिन भजन्ता, सर्व सम्पत्ति पावे ॥ १ ॥ जिनवर - पद सेवा, सर्व सम्पत्तिदाई, निशादन सुखदाई, कल्पवल्ली सहाई । नाम - विना लही जे, सर्व - विद्या बडाई, ऋषभ जिनह सेवा, साधनां तेह पाई ॥ २ ॥
[ २३ ]
चैत्यवन्दन
( १ )
पद्मप्रभु ने वासुपूज्य, दोय राता कहीये । चन्द्रप्रभु ने सुविधिनाथ, दो उज्ज्वल लहीये ॥ १ ॥ मल्लिनाथ ने पार्श्वनाथ, दो नीला निरख्या ।
सरीखा ॥ २ ॥
मुनिसुव्रत ने नेमिनाथ, दो अंजन मोले जिन कञ्चन समा, एवा निज धोरविमल पण्डिततणो, ज्ञानविमल कहे शिष्य ॥ ३ ॥
चोवीस |
( २ )
भावे ।
बार गुण अरिहन्तदेव प्रणमोजे सिद्ध आठ गुण समरतां, दुःख - दोहग जावे ॥ १ ॥
Jain Education International
1
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org