Book Title: Panchpratikramansutra tatha Navsmaran
Author(s): Jain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
Publisher: Jain Sahitya Vikas Mandal

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Page 587
________________ ५७० मेरो मन ! तुम साथे लीनो, मीन बसे ज्यूं जलमें हो जिनजी ! शान्ति ॥४॥ जिनरंग कहे प्रभु शान्ति जिनेश्वर, दीठो देव सकलमें साहेबजी ! शान्ति० ॥ ५ ॥ (१२) श्रीकुन्थुनाथस्वामीका स्तवन ( राग-गूर्जरी रामकली, अम्बर दे दे मुरारि ! हमारो-यह देशी ) मनडुं किमहि न बाजे हो कुन्थुजिन ! मनडुं किमहि न बाजे । जिम जिम जतन करोने राखू, तिम तिम अलगुं भाजे हो कुन्थुजिन० ॥ १॥ रजनी वासर वसती ऊजड़, गयण पायाले जाय । 'सांप खायने मुखड़े थोथु', एह उरवाणो न्याय हो कुन्थुजिन० ॥ २॥ मुगतितणा अभिलाषी तपिया, ज्ञान ध्यान अभ्यासे । वयरोडु कांई एहवं चिते, नाखे अवले पासे हो कुन्थुजिन० ॥ ३ ॥ आगम आगमधरने हाथे, नावे किणविध आंकू । किहां कणे जो हठ करी हटकू (तो) व्यालतणी परे वांकु हो कुन्थुजिन० ॥ ४॥ जो ठग कहुं तो ठगता न देखू, शाहुकार पण नाही । सर्वमांहे ने सहुथी अलगुं, ए अचरिज मनमांहि हो कुन्थुजिन० ।। ५ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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