Book Title: Panchpratikramansutra tatha Navsmaran
Author(s): Jain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
Publisher: Jain Sahitya Vikas Mandal

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Page 597
________________ ५८० (२१) ढाल दूसरी श्रीऋषभनु जन्म-कल्याण रे! वली चारित्र लाभले वाण रे ! त्रीजा सम्भव च्यवन कल्याण रे ! भवि तुमे ! अष्टमी तिथि सेवो रे ! ए छे शिववधू वरवानो मेवो रे-भवि तुमे ! अष्टमी० ॥१॥ श्रीअजित-सुमति जिन जन्म्यां रे! अभिनन्दन शिवपद पाम्यां रे ! च्यव्या सातमा जिनगुणग्राम-भवि तुमे ! अष्टमी० ॥२॥ वीशमां मुनिसुव्रत स्वामी रे! नमि नेमि जन्म्या गुण धामी रे ! वर्या मुक्तिवधु नेमस्वामी-भवि तुमे ! अष्टमी० ॥ ३ ॥ पार्श्वनाथजी मोह-महंता रे! इत्यादिक जिन गुणवन्ता रे ! कल्याणक मुख्य कहेतां-भवि तुमे ! अष्टमी० ॥ ४ ॥ श्रीवीर जिणन्दनी वाणी रे! निसुणी समज्या भवि प्राणी रे ! आठम दिन अति गुण खाणी-भवि तुमे ! अष्टमी० ॥ ५ ॥ अष्ट कर्म ते दूर पलाय रे ! एथी अडसिद्धि अडबुद्धि थाय रे ! ते कारण सेवो चित्त लाय-भवि तुमे ! अष्टमी० ।। ६ ।। श्री उदयसागर गुरुराया रे! जस शिष्य विवेक ध्याया रे! तस न्यायसागर गुण गाया, भवि तुमे ! अष्टमी० ॥ ७ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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