Book Title: Panchpratikramansutra tatha Navsmaran
Author(s): Jain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
Publisher: Jain Sahitya Vikas Mandal
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जे सघलां तीरथ कर्यां, जात्रा फल कहीए। तेहथी ए गिरि भेटतां, शतगणुं फल लहीए-विमला० ॥४॥ जनम सफल होय तेहनो, जेह ए गिरि वन्दे । सुजसविजय सम्पद लहे, ते नर चिर नन्दे-विमला० ॥ ५ ॥
(१८) द्वितीयाका स्तवन
( देशी-सुरती महिनानी) सरस वचन रस वरसती, सरस्वती कला भण्डार । नोजतणो महिमा कहूं, जिम कह्यो शास्त्र मोझार ॥१॥ जम्बूद्वीपना भरतमां, राजगृही उद्यान । वीर जिणन्द समोसर्या, वन्दन आव्या राजन
॥२॥ श्रेणिक नामे भूपति, बेठा बेसण-ठाय । पूछे श्रीजिनरायने, द्यो उपदेश महाराय
॥३॥ त्रिगडे बेठा त्रिभुवनपति, देशना दीये जिनराय । कमल-सुकोमल-पाँखडी, इम जिन-हृदय सोहाय शशि-प्रगटे जिम ते दिने, धन्य ते दिन सुविहाण । एक मने आराधतां, पामे पद निर्वाण
॥५॥ ढाल दूसरी
( अष्टापद अरिहन्ताजी-यह देशी ) कल्याणक जिनना कहूं, सुण प्राणीजी रे ! अभिनन्दन अरिहन्त ए भगवन्त, भविप्राणीजी रे! माघ शुदि बीजने दिने, सुण प्राणोजी रे ! जन्म्या प्रभु सुखकार, हरख अपार, भविप्राणीजी रे ! ॥१॥
॥
४
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