Book Title: Panchpratikramansutra tatha Navsmaran
Author(s): Jain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
Publisher: Jain Sahitya Vikas Mandal

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Page 585
________________ ५६८ ( १० ) श्री शान्तिनाथस्वामीका स्तवन ( राग - मल्हार : चतुर चोमासुं पडिक्मी - यह देशी ) शान्ति जिन एक मुझ विनति, सुणो त्रिभुवन - राय रे ! शान्ति स्वरूप किम जाणीए, कहो मन किम परखाय रे - शान्ति० ।। १ ।। धन्य तुं आतम जेहने, एहवो प्रश्न अवकाश रे ! धीरज मन धरी सांभलो, कहुँ शान्ति प्रतिभास रे - शान्ति० ॥ २ ॥ भाव अविशुद्ध सुविशुद्ध जे, कह्या जिनवर देव रे ! ते ते अवितथ सहे, प्रथम ए शान्तपद तेव रे - शान्ति० ।। ३ ।। आगमधर गुरु समकिती, किरिया संवर सार रे ! सम्प्रदायो अवञ्च सदा, शुचि अनुभव आधार रे - शान्ति• ॥ ४ ॥ शुद्ध आलम्बन आदरे, तजी अवर जंजाल रे ! तामसी वृत्त सवि परिहरे, भजे सात्त्विक शाल रे - सन्ति० ।। ५ ।। फल विसंवाद जेहमां नहीं, शब्द ते अर्थ सम्बन्धी रे ! सकल नयवाद व्यापी रह्यो, ते शिव साधन सन्धि रे - शान्ति ॥ ६॥ विधि प्रतिषेध करी आतमा, पदारथ अविरोध रे ! ग्रहण विधि महाराजने परिग्रह्यो, ईस्यो आगमे बोध रे - शान्ति ० ॥ ७ ॥ दुष्टजन संगति परिहरी, भजे सुगुबु सन्तान रे ! जोग सामर्थ्य चित्त भावजे, धरे मुगति निदान रे - शान्ति ॥ ८ ॥ मान अपमान चित्त सम गणे, सम गणे कनक पाषाण रे ! बन्दक निन्दक सम गणे, Jain Education International ईस्यो होये तुं जाण रे - शान्ति० ॥ ९ ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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