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श्री शान्तिनाथस्वामीका स्तवन
( राग - मल्हार : चतुर चोमासुं
पडिक्मी - यह देशी )
शान्ति जिन एक मुझ विनति, सुणो त्रिभुवन - राय रे ! शान्ति स्वरूप किम जाणीए, कहो मन किम परखाय रे - शान्ति० ।। १ ।।
धन्य तुं आतम जेहने, एहवो प्रश्न अवकाश रे ! धीरज मन धरी सांभलो, कहुँ शान्ति प्रतिभास रे - शान्ति० ॥ २ ॥
भाव अविशुद्ध सुविशुद्ध जे, कह्या जिनवर देव रे ! ते ते अवितथ सहे, प्रथम ए शान्तपद तेव रे - शान्ति० ।। ३ ।।
आगमधर गुरु समकिती, किरिया संवर सार रे ! सम्प्रदायो अवञ्च सदा, शुचि अनुभव आधार रे - शान्ति• ॥ ४ ॥
शुद्ध आलम्बन आदरे, तजी अवर जंजाल रे ! तामसी वृत्त सवि परिहरे, भजे सात्त्विक शाल रे - सन्ति० ।। ५ ।।
फल विसंवाद जेहमां नहीं, शब्द ते अर्थ सम्बन्धी रे ! सकल नयवाद व्यापी रह्यो, ते शिव साधन सन्धि रे - शान्ति ॥ ६॥
विधि प्रतिषेध करी आतमा, पदारथ अविरोध रे ! ग्रहण विधि महाराजने परिग्रह्यो, ईस्यो आगमे बोध रे - शान्ति ० ॥ ७ ॥
दुष्टजन संगति परिहरी, भजे सुगुबु सन्तान रे ! जोग सामर्थ्य चित्त भावजे, धरे मुगति निदान रे - शान्ति ॥ ८ ॥
मान अपमान चित्त सम गणे, सम गणे कनक पाषाण रे !
बन्दक निन्दक सम गणे,
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ईस्यो होये तुं जाण रे - शान्ति० ॥ ९ ॥
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