SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 586
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५६९ सर्व जगजन्तुने सम गणे, गणे तृण मणि-भाव रे ! मुक्ति संसार बेहु सम गणे, मुने भवजलनिधि नाव रे-शान्ति० ॥१०॥ आपणो आतमभाव जे, एक चेतनाधार रे! अवर सवि साथ संयोगथो, एह निज परिकर सार रे-शान्ति ॥११॥ प्रभु मुखथी एम सांभली, कहे आतमराम रे! ताहरे दरिसणो निस्तयों, मुज सिध्यां सवि काम रे-शान्ति० ॥१२॥ अहो अहो हुं मुंजने कहुं, नमो मुज नमो मुज रे ! अमित फल दान दातारनी, जेहनी भेट थई तुज रे-शान्ति० ॥१३॥ शान्ति सरूप संक्षेपथी, कह्यो निज पर-रूप रे! आगम मांहे विस्तर घणो, कह्यो शान्ति जिन-भूप रे-शान्ति० ॥१४॥ शांति सरूप एम भावशे, धरी शुद्ध प्रणिधान रे ! आनन्दघन पद पामशे, ते लहेशे बहुमान रे-शान्ति० ॥१५॥ (११) श्रीशान्तिजिनका स्तवन शान्ति जिनेश्वर साचो साहिब, शान्ति करण अनुकूलमें हो जिनजो ! शान्ति। तुं मेरा मनमें तुं मेरा दिलमें, ध्यान धरूँ पलपलमें साहेबजी! शान्ति०॥१॥ भवमां भमतां में दरिसण पायो, आश पूरो एक पलमें हो जिनजी! शान्ति० ॥२॥ निर्मल ज्योत वदन पर सोहे, निकस्यो ज्यूं चन्द बादलमें साहेबजी ! शान्ति० ॥३॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy