Book Title: Panchpratikramansutra tatha Navsmaran
Author(s): Jain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
Publisher: Jain Sahitya Vikas Mandal
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माधव सित एकादशी, सोमल द्विज यज्ञ । इन्द्रभूति आदे मली, छे एकादश विज्ञ ॥ २॥ एकादशसें चउ गुणो, तेहनो परिवार । वेद अरथ अवलो करे, मन अभिमान अपार ॥ ३ ॥ जोवादिक संशय हरी, एकादश गणधार । बीरे स्थाप्या वन्दीए, जिनशासन जयकार ।।। ४ ॥ मल्लिजन्म अर-मल्लि-पास, वर-चरण-विलासी। ऋषभ अजित सुमति नमि, मल्लि घन-घाती विनाशी॥ ५ ॥ पद्मप्रभ शिववास पास, भवभवना तोड़ी। एकादशी दिन आपणी, ऋद्धि सघळी जोड़ी ॥६॥ दश क्षेत्रे तिहुं कालना, त्रणशें कल्याण । वर्ष अग्यार एकादशी, आराधो वरनाण ॥७॥ अगियार अङ्ग लखावीए, एकादश पाठा। पूंजणी ठवणी वीटणी, मसी कागळ ने काठा ॥ ८॥ अगियार अव्रत छांडवा ए, वहो पडिमा अगियार । खिमाविजय जिनशासने, सफल करो अवतार ॥९॥
(१६) श्रीपर्युषणा-पर्वका चैत्यवन्दन पर्व पर्युषण गुणनीलो, नवकल्पी विहार । चार मासान्तर स्थिर रहे, एही ज अर्थ उदार ॥ १॥ अषाड सुदी चउदश थकी, संवत्सरी पचास । मुनिवर दिन सित्तेरमें, पडिक्कमतां चौमास ॥२॥ श्रावक पण समता धरी, करे गुरुनां बहुमान । कल्पसूत्र सुविहित मुखे, सांभले थइ एक तान ॥ ३ ॥
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