Book Title: Panchpratikramansutra tatha Navsmaran
Author(s): Jain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
Publisher: Jain Sahitya Vikas Mandal

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Page 559
________________ ५४२ गुर्वादिक सम्बुद्धोंको खमाया जाता है, परन्तु गुर्वादिकके खमानेसे पूर्व द्वादशावर्त्त-वन्दन किया जाता है और वैसा वन्दन करनेसे पूर्व महपत्ती पडिलेहना की जाती है। इस प्रकार मुहपत्तीका पडिलेहण करनेवाला व्यक्ति प्रतिक्रमणकी मण्डलीमें गिना जाता है, अन्य नहीं गिने जाते। ( इसी उद्देशसे जिसने मुहपत्तीकी प्रतिलेखना नहीं की हो उस व्यक्तिको छींक आये तो उसका बाध नहीं गिनना । ऐसी प्रवृत्ति है।) ३. फिर संक्षेप और विस्तारसे पापकी आलोचना करनेके लिये 'आलोयणा-सुत्त' बोलनेके अनन्तर अतिचार बोले जाते हैं। उनमें किन अतिचारोंका सेवन हुआ है, यह जानकर आलोचना और प्रतिक्रमणके लिये एक व्यक्ति अतिचार बोलता है और अन्य एकाग्र चित्तसे सुनते हैं ! ४-५. फिर 'सव्वस्स वि' सूत्र बोलकर सर्व अतिचारोंका प्रतिक्रमण-प्रायश्चित्त ग्रहण किया जाता है। उसके बाद पाक्षिक, चातुर्मासिक और सांवत्सरिक तपके रूपमें एक, दो और चार उपवास; अथवा दो, चार और छः आयंबिल; अथवा तीन, छ: और नौ निव्वी; अथवा चार, आठ और बारह एकाशन; अथवा दो, चार और छः हजार सज्झायके तपका निवेदन किया जाता है। यदि ऐसा तप किया हुआ हो तो 'पइटिओ' बोला जाता है, उसका अर्थ यह है कि 'मैं अभी वैसे तपमें स्थित हूँ', और यदि ऐसा तप शीघ्र ही करना हो तो 'तह त्ति' कहा जाता है। कुछ लोग इस समय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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