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(११) छठा आवश्यक (प्रत्याख्यान )
इसके बाद बैठकर छठे आवश्यककी मुहपत्ती पडिलेहनी और द्वादशावत-वन्दन करना तथा अवग्रहमें रहकर ही 'सकलतीर्थवन्दना' सूत्र बोलना। फिर पच्चक्खाणका आदेश लेकर यथाशक्ति पच्चक्खाण करके, दैवसिक प्रतिक्रमणकी तरह छ: आवश्यक करना।
११२) मङ्गल स्तुति फिर 'इच्छामो अणुसद्धिं ऐसा कहकर, बैठकर 'नमो खमासमणाणं' 'नमोऽर्हत्' इत्यादि पाठ कहकर 'विशाल-लोचनदलं' सूत्र बोलना।
(१३) देव-वन्दन फिर 'नमो त्थु णं' सूत्र कह कर खड़े होकर 'अरिहंत चेइआणं' सूत्र और 'अन्नत्थ' सूत्र कह कर, एक नमस्कारका काउस्सग्ग करके, पार कर, 'नमोहत्' कह कर 'कल्लाणकंदं' थुइकी पहली गाथा बोलनी, और चौथो गाथा तककी सम्पूर्ण विधि दैवसिक प्रतिक्रमणकी तरह करनी।
फिर बैठ कर 'नमो त्थु णं' सूत्रका पाठ बोलकर चार खमा० प्रणि० पूर्वक भगवान् आदि चारको थोभवंदन करना।
फिर दाहिना हाथ चरवला अथवा कटासणा के ऊपर रखकर 'अड्ढाइज्जेसु' सूत्र बोलना।
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