________________
५१०
गिनकर पच्चक्खाण पारके वापरना । फिर सबको देव - वन्दन
करना चाहिये ।
(१६) पोसह पारने से पूर्व याचे हुए दंडासन, कुण्डी, पानी आदि गृहस्थको फिर सँभला देने ।
(१७) फिर यथावसर दैवसिक अथवा पाक्षिकादि प्रतिक्रमण करना । उसमें प्रथम सिर्फ इरियावही पडिक्कमण करना और फिर खमा० प्रणि० करके चैत्य - वन्दन करना । 'जीवहिंसा - आलोयण' सुत्त ( 'सात लाख' सूत्र ) तथा 'अट्ठारस - पावठाणाणि' ( 'अठारह-पापस्थानक' ) सूत्रके बदले में 'गमणागमण' आलोचना और 'सामाइय - सुत्त' ( 'करेमि भंते' सूत्र ) ' जाव-नियम' के स्थान पर 'जाव - पोसहं' कहना |
(१८) प्रतिक्रमण करनेके पश्चात् सामायिक पूरा करनेके बदले चार प्रहरके पोसहवाले पोसह पारें । उसकी विधि इस प्रकार है
O
मा० प्रणि० करके इरियावही पडिक्कमण कर 'चउवकसायसुत्त' से 'जय वीयराय' सूत्र तक कहना । फिर खमा० प्रणि० - करके 'इच्छा मुहपत्ती पडिलेहुं ? ऐसा कहना और गुरु कहें - 'पडिले हेह' तब 'इच्छं' कहकर मुहपत्ती पडिलेहनी । बादनं खमा० प्रणि० करके 'इच्छा० पोसह पारू ? ऐसे कहना | गुरु कहें 'पुणो वि कायव्वो' तब 'यथाशक्ति' कहना । इसके बाद खमा० प्रणि० करके 'इच्छा • पोसह पार्यो' ऐसा कहना | गुरु कहें - ' आयारो न मोत्तव्त्रो' तब 'तह त्ति' कहकर चरवले पर हाथ रखकर एक नमस्कार
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org