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कि उनके और साधकके बीच क्रिया करते समय किसी का आना जाना न हो।
सूत्रकी रचनामें बहुश्रुतोंने यथाशक्य रहस्य लूंसकर भरा है; अतः उसका पाठ करते समय वह शुद्ध रीतिसे बोला जाय और साथ ही साथ उसके अर्थ तथा भावका भी चिन्तन हो यह आवश्यक है । नमस्कार-मन्त्र सामायिकका अङ्ग है। जिन्होंने सामायिकको शोध को, सामायिककी प्ररूपणा की वे अर्हन्त भगवन्त इसमें प्रथम स्थान पर विराजित हैं। सामायिकका अन्तिम साध्य सिद्धावस्था है, अतः सिद्ध भगवन्त इसमें द्वितीय स्थानमें विराजित हैं। बादमें तीन स्थान सामायिककी उत्कृष्ट साधना करनेवाले आचार्य, उपाध्याय तथा साधुओंको प्राप्त हैं। इन सबकी महत्ता सामायिकको साधनाके रूपमें ही है। ___ मङ्गलरूप 'नमस्कार-सूत्र' बोलनेके बाद 'पंचिदिय-सुत्त' बोला जाता है । उसमें गुरु-गुणका स्मरण है। ऐसे गुणवाले गुरुके सान्निध्यमें बैठकर मैं सामायिकरूपी आध्यात्मिक अनुष्ठान कर रहा हूँ, इस विचारसे साधकको महद् अंशमें सान्त्वना मिलती है । गुरुओंके लिये यह सूत्र मार्गदर्शक है और साधकोंके लिये यह सूत्र आलम्बनरूप है। ___ इतनी विधि करनेके अनन्तर खड़े होकर गुरुको वन्दन करनेके हेतुसे 'इच्छामि खमासमणो ! वंदिउं जावणिज्जाए निसीहिआए' इतने पद बोले जाते हैं। बादमें चरवलेसे भूमिको प्रमार्जित कर नीचे नमते हुए, मस्तक तथा दोनों हाथ ( अञ्जलिपूर्वक ) और दोनों जानु
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