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'ककी साधना' आरम्भ की जाती है, जो इस समयसे लेकर बराबर दो घड़ी तक अर्थात् ४८ मिनिट पर्यन्त एकसरीखी चाल रखनी चाहिये !
जितने क्षण समभाव में जाँय वह 'सामायिक' है । फिर भी उसको व्रतकी कोटि में लाने के लिये एक 'सामायिक साधना' का समय एक मुहूर्त अर्थात् दो पड़ी जितना ( ४८ मिनिट) निश्चित किया गया है ।
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सामायिक पारनेकी विधिके हेतु
'सामायिककी साधना' करनेवालेका जीवन- परिवर्तन हो जाता है, वास्तविकरूपमें वह परिवर्तन करनेके लिए ही आयोजित है । मैत्री आदि भावनासे वासित मन कठोरता, कृपणता, मिथ्याभिमान अथवा ममत्वको शीघ्र झेलता नहीं अर्थात् प्रारम्भ किया हुआ सामायिक छूट न जाय यही इष्ट है । ऐसा होने पर भी व्यावहारिक मर्यादाओं के कारण उसकी पूर्णाहुति करनी पड़ती है, जिसकी खास विधि है । तदर्थ प्रथम खमासमण प्रणिपातद्वारा गुरुवन्दन कर ईर्यापथप्रतिक्रमण किया जाता है अर्थात् 'इरिया वही' सूत्र 'तस्स उत्तरी' सूत्र और 'अन्नत्थ' सूत्रके पाठ बोलकर पचीस श्वासोच्छ् वास के कायोत्सर्ग में स्थिर होकर प्रकट 'लोगस्स' सूत्र बोला जाता है । फिर मुहपत्ती पडिलेहण किया जाता है । तदनन्तर पुनः खमासमण प्रणि पातद्वारा गुरुको वन्दन करके सामायिक पारनेकी - पूर्ण पारने की आज्ञा प्राप्त करनेके लिये कहा जाता है कि 'इच्छा० संदिसह भगवन् !
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