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५०१ कर वह सूत्र प्रकट बोलना (२) फिर 'इच्छा० पोसह-मुहपत्ती पडिलेहुं ?' ऐसी कहकर मुहपत्ती पडिलेहनेकी आज्ञा माँगनी । गुरु कहें 'पडिलेहेह' तब 'इच्छं' कहकर बैठकर मुहपत्ती पडिलेहनी। (३) फिर खमा० प्रणि० करके 'इच्छा-पोसह संदिसाहु ?' ऐसा कहकर
आज्ञा माँगनी। गुरु कहें-'संदिसामि' तब 'इच्छं' कहकर खमा० प्रणि० करके कहना कि 'इच्छा० पोसह ठाउं ?' गुरु कहें-'ठाएह' तब 'इच्छं' कहकर खड़े-खड़े एक नमस्कार गिनना । (४) फिर इच्छ-कारी भगवन् ! पसाय करी पोसह दंडक उच्चरावोजी' ऐसे कहकर गुरु महाराजके पास या किसी पूज्य व्यक्तिके पास अथवा वैसा योग न हो तो स्वयंको 'पोसह लेनेका' सूत्र ( क्रमाङ्क ४४ ) बोलना। (५) फिर सामायिक मुहपत्ती पडिलेहणके आदेशसे लेकर तीन नमस्कार गिनकर सज्झाय करने तक सामायिक लेनेकी सारी विधि करनी । उसमें विशेषता इतनी है कि 'जाव नियम' के स्थान पर 'जाव पोसह' कहना। (६) फिर खमा० प्रणि० करके 'इच्छा. बहुवेल संदिसाहुं ?' कहना । गुरु कहें-'संदिसामि' तब 'इच्छं' कहकर खमा० प्रणि• करके 'इच्छा. बहुवेल करूँगा' ऐसा कहना। गुरु कहें-'करना' तब 'इच्छं' कहना । (७) खमा० प्रणि० करके 'इच्छा० पडिलेहण करूँ ?' इस तरह कहना । गुरु कहें-'करेह तब 'इच्छं' कहकर, पाँच वस्तुका पडिलेहण करना । उसमें मुहपत्तीका ५० बोलसे, चरवलाका १० बोलसे, कटासणका २५ बोलसे, सूतकी मेखलाका ( कंदोरेका } १० बोलसे और धोतोका २५ बोलसे पडिलेहण करना। (८) फिर पडिलेहना की हुई धोती पहनकर,
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