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(९) चौथा आवश्यक ( प्रतिक्रमण) फिर 'इच्छा० राइअं आलोउं ?' ऐसा कह कर रात्रिमें हुए पापोंकी आलोचना करनेकी अनुज्ञा माँगनी और वह मिलनेपर 'इच्छं' कहकर, 'आलोएमि जो मे राइओ०' पाठ बोलना।
फिर 'सात लाख,' 'अढार पापस्थानक' और 'सव्वस्स वि राइअ०' का पाठ बोलना।
___ फिर वोरासनसे बैठ कर अथवा वह नहीं आता हो तो दाँया घुटना खड़ा रखकर 'नमस्कार,' 'करेमि भंते !,' 'इच्छामि पडिक्कमि जो मे राइओ०' बोलकर 'सावग-पडिक्कमण'-सुत्त ( 'वंदित्तु' सूत्र ) बोलना । उसमें ४३ वी गाथामें 'अभुठ्ठिओ मि' पद कहते हुए खड़े होकर सूत्र पूरा करना।
फिर द्वादशावत-वन्दन करना और अवग्रहमें खड़े रहकर, आदेश माँग करके 'अब्भुट्ठिओ०' सूत्र बोलकर गुरुको खमाना और अवग्रहसे बाहर निकलकर पुनः द्वादशावत-वन्दन करना। तत्पश्चात् 'आयरिय-उवज्झाए' सूत्र बोलना। फिर अवग्रहसे बाहर निकलना।
(१०) पाँचवाँ आवश्यक ( कायोत्सर्ग) तदनन्तर 'करेमि भंते' सूत्र, 'इच्छामि ठामि०', 'तस्स उत्तरी' सूत्र, 'अन्नत्थ' सूत्र बोलकर तपका चिन्तन करना और वह नहीं आता हो तो सोलह नमस्कारका काउस्सग्ग कर, उसे पूर्ण कर 'लोगस्स' का पाठ बोलना।
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