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गंभीरा' तक और अन्य दुःस्वप्न आये हों या न आये हों तो भी 'चंदेसु निम्मलयरा' तक चार 'लोगस्स' का अथवा सोलह नमस्कारका काउस्सग्ग करके, पार कर, प्रकट 'लोगस्स' कहना।
(३) चैत्यवन्दनादि फिर खमा० प्रणि० करके 'इच्छा० चेइयवंदणं करेमि' ऐसा कहकर चैत्यवन्दन करनेकी आज्ञा माँगनी और आज्ञा मिलने पर 'इच्छं' कहकर बैठकर 'जगचिंतामणि' सुत्त, 'जं किंचि' सुत्त आदि 'जय वीयराय' सूत्र तक बोलना ।
फिर 'भगवदादि-वन्दन' सूत्र बोलकर चार खमा० प्रणि० करके भगवान्, आचार्य, उपाध्याय और सर्व साधुकोथोभवंदन करना।
(४) सज्झाय-स्वाध्याय फिर खड़े होकर खमा० प्रणि० करके 'इच्छा० सज्झाय संदिसाहुं ?' कहकर सज्झाय करनेका आदेश माँगना और वह मिलने पर 'इच्छं' कहकर, एक खमा० प्रणि० करके 'इच्छा० सज्झाय करूँ ?' ऐसी इच्छा प्रकट करनी और अनुज्ञा मिलनेपर 'इच्छं' कहकर, बैठकर, एक नमस्कार गिनकर 'भरहेसर०' की सज्झाय बोलनी और बादमें एक नमस्कार गिनना।
(५) रात्रिक प्रतिक्रमणकी स्थापना इसके पश्चात् 'इच्छकार सुहराइ सुखतप०' का पाठ बोलना। फिर 'इच्छा० राइअ-पडिक्कमणे ठाउं ?' ऐसा कहकर प्रतिक्रमणकी स्थापना करनेकी आज्ञा मांगनी और आज्ञा मिलनेपर 'इच्छं' कहकर,
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