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फिर खमा० प्रणि० करके 'इच्छा० सामायिक पारूं ?' ऐसा कहकर सामायिक पारनेका आदेश माँगना और गुरु कहें ' पुणो वि कायन्वं" तब यथाशक्ति कहकर 'इच्छा० सामायिक पायें, ऐसा कहना और गुरु कहें कि - ' आयारो न मोत्तव्वो" तब तह त्ति' कह कर सामायिक पारनेकी विधिके अनुसार 'सामाइय-पारणगाहा' ( सामाइयवय - जुत्तो' ) तक सर्व कहना । फिर स्थापना स्थापी हो तो वह उठा लेनेके लिये उत्थापनी मुद्रासे ( दाहिना हाथ सीधा रखकर ) एक नमस्कार गिनना । इति ।
[ ४ ] रात्रिक प्रतिक्रमणकी विधि
( १ ) सामायिक
सामायिक लेना ।
(२) कुस्वप्न - दुःस्वप्खके निमित्त काउस्सग्ग
फिर खमा० प्रणि० करके 'इच्छा० कुसुमिण - दुसुमिण - उड्डावणियं राइअ - पायच्छित्त - विसोहणत्थं काउस्सग्गं करूं ?' कहकर काउस्सग्गकी आज्ञा मांगनी और आज्ञा मिलनेपर 'इच्छं' कहकर 'कुसुममिण - दुसुमिण - उड्डावणियं राइअ - पायच्छित्त-विसोहणत्थं करेमि काउस्सगं' ऐसा कहना | बादमें 'काउस्सगं' सुत्त बोलकर उस रात्रि में काम - भोगादिकके दुःस्वप्न आये हों, तो 'सागरवर -
५. फिरसे भी ( सामायिक ) करने योग्य है ।
२. ( सामायिक ) का आचार छोड़ने जैसा नहीं है ।
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