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________________ ४८८ , फिर खमा० प्रणि० करके 'इच्छा० सामायिक पारूं ?' ऐसा कहकर सामायिक पारनेका आदेश माँगना और गुरु कहें ' पुणो वि कायन्वं" तब यथाशक्ति कहकर 'इच्छा० सामायिक पायें, ऐसा कहना और गुरु कहें कि - ' आयारो न मोत्तव्वो" तब तह त्ति' कह कर सामायिक पारनेकी विधिके अनुसार 'सामाइय-पारणगाहा' ( सामाइयवय - जुत्तो' ) तक सर्व कहना । फिर स्थापना स्थापी हो तो वह उठा लेनेके लिये उत्थापनी मुद्रासे ( दाहिना हाथ सीधा रखकर ) एक नमस्कार गिनना । इति । [ ४ ] रात्रिक प्रतिक्रमणकी विधि ( १ ) सामायिक सामायिक लेना । (२) कुस्वप्न - दुःस्वप्खके निमित्त काउस्सग्ग फिर खमा० प्रणि० करके 'इच्छा० कुसुमिण - दुसुमिण - उड्डावणियं राइअ - पायच्छित्त - विसोहणत्थं काउस्सग्गं करूं ?' कहकर काउस्सग्गकी आज्ञा मांगनी और आज्ञा मिलनेपर 'इच्छं' कहकर 'कुसुममिण - दुसुमिण - उड्डावणियं राइअ - पायच्छित्त-विसोहणत्थं करेमि काउस्सगं' ऐसा कहना | बादमें 'काउस्सगं' सुत्त बोलकर उस रात्रि में काम - भोगादिकके दुःस्वप्न आये हों, तो 'सागरवर - ५. फिरसे भी ( सामायिक ) करने योग्य है । २. ( सामायिक ) का आचार छोड़ने जैसा नहीं है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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