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आदेश मिलने पर 'इच्छं' कहकर खमा० प्रणि कहकर 'इच्छा० सज्झाय करू?' ऐसी इच्छा प्रकट करनी और उनकी अनुज्ञा मिलनेपर 'इच्छं' कहकर, बैठकर, एक नमस्कार गिनकर गुरु अथवा उनके आदेशसे किसी भी साधुको और साधुको अनुपस्थितिमें स्वयंको सज्झाय बोलनी चाहिये।
(१३) दुःख-क्षय तथा कर्म-क्षयका कायोत्सर्ग फिर एक नमस्कार गिनकर खड़े होकर खमा० प्रणि० कहकर 'इच्छा० दुक्खखय-कम्मखय-निमित्तं करेमि काउस्सगं ?' ऐसा कहकर आज्ञा मिलनेपर 'इच्छं' कहकर 'तस्स-उत्तरी' व 'अन्नत्थ०' सूत्र बोलना और सम्पूर्ण चार 'लोगस्स' का अथवा सोलह नमस्कार का काउस्सग्ग कर, 'नमोहत्' कहकर 'शान्तिस्तव ( लघु-शान्ति )' बोलना । अन्य सब काउस्सग्गमें रहकर उसका श्रवण करें। फिर काउस्सग्ग पूरा करके, 'लोगस्स' बोलकर, खमा० प्रणि० करके अविधि-आशातनाके बारेमें 'मिच्छामि दुक्कडं' कहना ।
(१४ ) सामायिक पारनेकी विधि खमा० प्रणि० करके 'इरियावहो' सूत्र 'तस्स उत्तरी०' सूत्र तथा 'अन्नत्थ०' सूत्र बोलकर एक 'लोगस्स' अथवा चार नमस्कारका काउस्सग्ग कर, पूर्णकर, 'लोगस्स' का पाठ बोलना।
फिर बैठकर 'चउक्कसाय' सूत्र 'जं किंचि' सूत्र 'नमो त्थु णं' सूत्र, 'जावंति चेइयाई' सूत्र बोलकर, खमा० प्रणि० करके, 'जावंत के वि साहू' सूत्र, नमोऽहत्' सूत्र तथा 'उवसग्गहरं' का पाठ बोलकर दोनों हाथ मस्तकपर जोड़ कर 'जय वीयराय' सूत्र बोलना।
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