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(१०) स्तुति मङ्गल
बादमें 'इच्छामो अणुर्साट्ठ' ऐसा कहकर, बैठकर, 'नमो खमासभणाणं, नमोऽर्हत्०' इत्यादि पाठ कहकर 'वर्धमान स्तुति' अर्थात् 'नमोsस्तु वर्धमानाय' सूत्र बोलना । यहाँ स्त्रीको 'संसार- दावानल० ' स्तुतिकी तीन गाथाएँ बोलनी चाहिये ।
फिर 'नमोत्थु णं' सूत्र बोलकर स्तवन कहना । यह स्तवन पूर्वाचार्य द्वारा रचित तथा कमसे कम पाँच गाथाओं का होना चाहिए । इसके अनन्तर 'सप्तति - शत - जिनवन्दन' ( 'वरकनक - 'स्तुति ) बोलकर पहले की तरह भगवान् आदि चारको चार खमा० प्रणि० द्वारा थोभवंदन करना ।
फिर दाहिना हाथ चरवलेपर अथवा भूमि पर रखकर 'अड्ढाई - ज्जेसु' सूत्र कहना ।
( ११ ) प्रायश्चित्त - विशुद्धिका कायोत्सर्ग
फिर खड़े होकर 'इच्छा० देवसिअ - पायच्छित्त-विसोहणत्थं काउस्सग्गं करूँ ?” ऐसा बोलकर काउस्सग्गकी आज्ञा माँगनी और वह मिले तब 'इच्छं' कहकर 'देवसिय पार्याच्छत्त-विसोहणत्थं करेमि काउस्सग्गं' तथा 'तस्स उत्तरी०' व 'अन्नत्थ० ' सूत्र कहकर, चार 'लोगस्स' अथवा सोलह नमस्कारका काउस्सग्ग पूर्णकर, प्रकट 'लोगस्स' बोलना ।
( १२ ) सज्झाय ( स्वाध्याय )
इसके पश्चात् खमा० प्रणि० द्वारा वन्दन करके 'इच्छा० सज्झाय संदिसाहुं ?" इस प्रकार कहकर सज्झायका आदेश माँगना । तथा यह
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