SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 498
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४८१ पत्ती पडिलेहूं ?' ऐसा कहकर मुहपत्ती पडिलेहनेकी आज्ञा माँगनी और आज्ञा मिलनेपर 'इच्छं' कहकर मुहपत्तीकी पडिलेहणा करनी। ___ यदि आहार किया हो तो मुहपत्तीका पडिलेहण करनेके पश्चात् दो बार 'सुगुरु-वंदण' सुत्त बोलकर द्वादशावत वन्दन करना। दूसरी बार सूत्र बोलते समय 'आवस्सियाए' यह पद नहीं कहना। फिर अवग्रहमें खड़े रहकर ' इच्छकारी भगवन् ! पसाय करी पच्चक्खाणनो आदेश देशोजी' ऐसा कहना अर्थात् उस समय गुरु हों तो वे अथवा ज्येष्ठ व्यक्ति हों तो वे 'दिवस-चरिमं' का पाठ बोलकर पच्चक्खाण कराएँ । यदि वैसा योग न हो तो स्वयं ही 'दिवस-चरिमं' पाठ बोलकर कर यथाशक्ति पच्चक्खाण करे और अवग्रहसे बाहर निकले। (३) चैत्यवन्दनानि तदनन्तर खमा० प्रणि० करके — इच्छा० चेइयवंदणं करेमि ?' ऐसा कहकर गुरुके समक्ष चैत्यवन्दन करनेकी आज्ञा माँगनी । गुरु कहें-'करेह' तब 'इच्छं' कहकर ज्येष्ठ व्यक्ति अथवा स्वयं नीचे लिखे अनुसार पाठ बोलकर चैत्यवन्दन करे। प्रथम योगमुद्रासे मङ्गलरूप आद्य स्तुति ( चैत्यवन्दन ) करनी। फिर 'जं किंचि' सूत्र तथा 'नमो त्थु णं' सूत्रके पाठ क्रमशः बोलकर खड़े होकर 'अरिहंत चेइआणं' सूत्र तथा 'अन्नत्थ' सूत्रके पाठ बोलने । बादमें एक नमस्कारका कायोत्सर्ग करना और उसको Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy