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________________ ४८० ६- प्रकीर्ण सूचना प्रतिक्रमण समुदायके साथ बैठकर करना हो, तब अपनेसे बड़ोंका यथोचित विनय करना, शान्ति और शिष्टता का पालन करना तथा अपनेको आदेश मिला हो उस सूत्रके बोलनेमें सावधान रहना । सूत्र संहिता - पूर्वक बोलना और उस समय अर्थका भी ध्यान रखना । जहाँ-जहाँ जिस-जिस प्रकारकी मुद्राएँ करनेके लिये कहा हो, वहाँ-वहाँ उस-उस प्रकारकी मुद्राएँ करनी । प्रतिक्रमणको विधिके हेतुओंको बराबर समझकर उनके अनुसार लक्ष्य रखकर वर्तन करनेका प्रयत्न करना । आन्तरिक उल्लास - पूर्वक किया हुआ प्रतिक्रमण कर्मके कठिन बन्धनको शीघ्र काट डालता है, यह लक्ष्य में रखना चाहिये । रात्रिका प्रतिक्रमण अत्यन्त मन्द स्वरसे करना । सङ्केत खमा० प्रणि० = खमासमण बोलकर प्रणिपात करके । इच्छा : इच्छाकारेण संदिसह भगवान् ! = [ ३ ] दैवसिक प्रतिक्रमणकी विधि ( १ ) सामायिक प्रथम सामायिक लेना । Jain Education International (२) दिवस - चरिम - प्रत्याख्यान फिर पानी पिया हो तो खमा० प्रणि० करके 'इच्छा० मुह For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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