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मरणासं-सप्पओगे । कामभोगासंसप्पओगे । धर्म के प्रभाव से इह लोक संबंधी राजऋद्धि भोगादि की वांछा की । परलोक में देव. देवेन्द्र, चक्रवर्ती आदि पदवी की इच्छा की । सुखी अवस्था में जीने की इच्छा की । दुःख आने पर मरने की वांछा की । इत्यादि संलेखणा-व्रत संबंधी जो कोई अतिचार पक्ष-दिवस में सूक्ष्म या बादर जानते, अजानते लगा हो वह सब मन, वचन, काया से मिच्छामि दुक्कडं ॥
तपाचार के बारह भेद-छः बाह्य छःआभ्यंतर। "अणसणमूणोअरिया०" अनशनः-शक्ति के होते हुए पर्वतिथि को उपवास आदि तप न किया । ऊनोदरी:-दो चार ग्रास कम न खाये । वृत्तिसंक्षेपः-द्रव्य-खाने की वस्तुओं का संक्षेप न किया । रस-विगय त्याग न किया । कायक्लेश-लोच आदि । कष्ट न किया। संलीनता-अंगोपांग का संकोच न किया । पञ्चक्खाण तोड़ा । भोजन करते समय एकासणा, आयंबिल, प्रमुख में चौकी, पटड़ा, अखला आदि हिलता ठीक न किया। पञ्चक्खाणा पारना भुलाया, बैठते नवकार न पढ़ा । उठते पञ्चक्खाण न किया। निवि, आयंबिल, उपवास आदि तप में कच्चा पानी पीया । वमन हुआ । इत्यादि बाह्य तप संबंधी जो कोई अतिचार पक्ष-दिवस में सूक्ष्म या बादर जानते, अजानते लगा हो, वह सब मन, वचन, काया से. मिच्छामि दुक्कडं ॥
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