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क्रोध परिहरू। ७. इसी प्रकार मुहपत्ती बाँये हाथमें रखकर बाँये कन्धेपर प्रमार्जन करो और बोलो कि
मान परिहरू। ८. इसी तरह मुहपत्ती बाँये हाथमें रखकर दाँयो कोखमें प्रमाजना करो और बोलो कि
माया परिहरू।। ___९. फिर मुहपत्ती दाँये हाथमें पकड़कर बाँयो कोखमें प्रमार्जन करते हुए बोलो कि
__ लोभ परिहरू। १०. फिर दाँये पैरके बीच में और दोनों भागोंमें चरवलेसे तोन बार प्रमार्जना करते हुए बोलो कि
पृथ्वीकाय, अपकाय, तेउकायकी रक्षा करूं। ११. इसी प्रकार बाँये पैरके बीचमें और दोनों भागोंमें प्रमार्जना करते हुए बोलो किवायुकाय, वनस्पतिकाय, त्रसकायकी जयणा करूँ।
सूचना (१) 'मुहपत्तीका पडिलेहण' वस्तुतः अनुभवो व्यक्ति के पाससे सीखना चाहिये । यहाँ तो दिग्दर्शन मात्र कराया है।
(२) दसवें नियममें दाँया पैर बतयाया है, वहाँ बाँया पैर और ग्यारहवें नियममें बाँया पैर बतलाया है, वहाँ दाँया पैर, ऐसा विधिभेद अन्य ग्रन्थों में मिलता है।
(३) साध्वीजी को छातीकी ३ और कन्धे तथा कोखको ४
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