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४७८ - आवश्यक चूणिके अभिप्रायसे रात्रिक-प्रतिक्रमणं उग्घाडपोरिसी तक अर्थात् सूत्र-पोरिसी पूर्ण होने तक और व्यवहार-- सूत्रके अभिप्रायसे मध्याह्न तक कर सकते हैं। .
पाक्षिक-प्रतिक्रमण पक्षके अन्त में अर्थात् चतुर्दशीके दिन किया जाता है । चातुर्मासिक-प्रतिक्रमण चातुर्मासके अन्तमें अर्थात् कार्तिक शुक्ला चतुर्दशी, फाल्गुन शुक्ला चतुर्दशी और आषाढ़ शुक्ला चतुदशीके दिन किया जाता है तथा सांवत्सरिक-प्रतिक्रमण संवत्सरके अन्तमें अर्थात् भाद्रपद शुक्ला चतुर्थीके दिन किया जाता है ।
२-स्थान गुरु महाराजका योग हो तो प्रतिक्रमण उनके साथ करना, अन्यथा उपाश्रयमें या अपने घरपर करना । आ. चू. में कहा है कि- "असइ-साह-चेइयाणं पोसहसालाए वा सगिहे वा सामाइयं वा आवस्सयं वा करेइ ।" साधु और चैत्यका योग न हो तो श्रावक पोषधशालामें अथवा अपने घरपर भी सामायिक अथवा आवश्यक ( प्रतिक्रमण ) करे।” चिरन्तनाचार्यकृत प्रतिक्रमणविधिकी गाथामें कहा है कि
"पंचविहायार-विसुद्धि-हेउमिह साहु सावो वा वि । पडिक्कमणं सह गुरुणा, गुरु-विरहे कुणइ इक्को वि साधु और श्रावक पाँच प्रकारके आचारकी विशुद्धिके लिए गुरुके साथ प्रतिक्रमण करे और वैसा योग न हो तो अकेला भी करे।” ( परन्तु उस समय गुरुकी स्थापना अवश्य करे । स्थापनाचार्यकी विधि पहले बतला चुके हैं।)
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