________________
हिन्दी पाक्षिक-अतिचार नाणम्मि दंसणम्मि अ, चरणम्मितवम्मितह य वीरियम्मि।
आयरणं आयारो, इअ एसो पंचहा भणिओ ॥१॥ ज्ञानाचार, दर्शनाचार, चारित्राचार, तपाचार, वीर्याचार, इन पांचों आचारों में जो कोई अतिचार पक्ष, दिवस में* सूक्ष्म या बादर जानते, अजानते लगा हो वह सब मन, वचन, काया से मिच्छामि दुक्कडं ।
तत्र ज्ञानाचार के आठ अतिचार"काले विणए बहुमाणे, उवहाणे तह अनिण्हवणे । वंजण-अत्थ-तदुभये अट्ठ-विहो नाणमायारो" ॥२॥
ज्ञान नियमित समय में पढ़ा नहीं। अकाल समय में पढ़ा। विनय रहित, बहुमान रहित योगोपधानरहित पढ़ा। ज्ञान जिस से पढ़ा उससे अतिरिक्त को गुरु माना या कहा । देववंदन, गुरुवंदन करते हुए तथा प्रतिक्रमण, सज्झाय पढ़ते या गुणते अशुद्ध अक्षर कहा । काना, मात्रा न्यूनाधिक कही, सूत्र असत्य कहा।
*चउमासी प्रतिक्रमण में इन पांचों आचारों में जो कोई अतिचार चउमासीअ दिवस से सूक्ष्म आदि, संवच्छरीअ प्रतिक्रमण में इन पांचों आचारों में जो कोई अतिचार संवच्छरीअ दिवस में सूक्ष्म आदि पढ़ना चाहिये ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org