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करना।
जिस दिन धन ( रुपयों ) को ईस्या-ऐसे । स्नान करा कर उसको पूजा | भोग-वांछित-भोगकी इच्छासे । की जाती है।
खीण-वचन - दीनतापूर्ण वचन अनन्त-चउदसी-भाद्रपद शुक्ला | बोलकर। ___ चतुर्दशीका दिन । दाक्षिण्य-लगे-दाक्षिण्यसे, विवेक आदित्यवार-रविवार, ग्रह पीड़ादि
। से, लोक-लज्जाके कारण। . दूर करने के लिये कुछ रविवारों- वह - बंध - छविच्छेए० । इस को एकाशन अथवा उपवास
गाथाके अर्थके लिये देखो सूत्र
३२, गाथा १. !
गाढो घाव घाल्यो-गहरा घाव उत्तरायण - मकर - सङ्क्रान्तिका |
किया हो, बहुत पीटा हो । दिन मानना। नबोलवाया पानी आये तावडे-धूपमें ।
तब उसकी खुशी में मनाया खराकानखजूरा। जानेवाला पर्व ।
सरवला-जन्तुविशेष ।
साहतां-पकड़ते हुए। याग-यज्ञ कराना।
विणछा-नष्ट हुए हों। भोग-ठाकुरजीको भोग-नैवेद्य धरना।
निध्वंसपणु-निर्दयता। उतारणां कीधां-उतार कराया।
| झोल्या-नहाये। ग्रहण--सूर्य – ग्रहण अथवा चन्द्र
| सहसा रहस्सदारे० ।। इस गाथाग्रहणका दिन ।
के अर्थ के लिये देखो सूत्र ३२, शनैश्चर-शनिवारका दिन ( शनि- |
गाथा १ । वारका व्रत करना )।
। कूणह प्रत्ये-किसीके प्रति । अजाणतां थाप्यां-अजान मनुष्यों
मंत्र-मन्त्रणा, विचार-विमर्श । द्वारा स्थापित।
आलोच-आलोचना-विचारणा। अनेराइ-दूसरे भी।
अनर्थ पाडवा-कष्टमें डालना। व्रत-व्रतोलां-छोटे-बड़े व्रत । थापण मोसोकोधो - धरोहरके आगर-खान, जत्था-समूह ।। बारेमें झूठ बोला हो ।
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