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४४७ तांत-निन्दा (दूसरेकी पञ्चायत)। आहट्ट दोहट्ट-आर्त-रौद्र प्रकार
चिकना तार ताँत कहलाता | का। चाहे जैसा अनुचित । है। उसी परसे जो बात खूब
उज्जोही-प्रकाश । बार-बार छान-बीन कर फिर कही जाय, उसे भी ताँत ।
| आभड्यां-स्पर्श किया। कहते हैं।
अणपूग्यू-पूर्ण हुये बिना। निसाह (र)-चटनी आदि पीसने
आणवणे पेसवणे०॥-इस गाथाकी शिला।
के अर्थके लिये देखो सूत्र ३२, दाक्षिण्य लगे - दाक्षिण्यसे, गाथा २८ । लज्जासे।
छतुं-प्रकट। अंघोले-सामान्य स्नान करनेसे । संथारुच्चारविहि० ॥ इस गाथान्हाणे-विधि-पूर्वक स्नान करनेसे । के अर्थ के लिये देखो सूत्र ३२, दांतणे-दतौन - दन्तधावन करते गाथा २९ । समय।
बाहिरला-बाहरके । पग धोवणे-पाँव धोनेके समय ।।
लहुडा वडा स्थण्डिल-लघु नीति खेल-ताक साफ करते समय ।
। और बड़ी नीति मलमूत्र ) झोलणे झोल्या-तालाबमें नहाये।
.. करनेकी भूमि । संभेडा लगाड्या-परस्पर झगड़ा
'अणुजाणह जस्सुग्गहो'-जिनके ___ करवाया।
अवग्रहमें जगह हो, वे मुझे हुडु--भेड़।
उपयोगमें लेनेकी आज्ञा दें। झंझार्या-लड़ाये।
वोसिरे-त्याग करता हूँ। खादी लगे-हार जानेसे । | पोरिसीमांहि - रात्रिके पहले आली-गोली।
__ प्रहरमें। तिविहे दुप्पणिहाणे० ॥-इस असूरो लोधो-विलम्बसे ग्रहण
गाथाके अर्थके लिये देखो किया ।। सूत्र ३२, गाथा २७ । । सवेरो-जल्दी, समयसे पूर्व ।
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