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संति-सामि-पायाणं-पूज्य श्री- खेल-कफ । ओसहि ओषधि । शान्तिनाथ भगवान्को।
___ लद्धि-लब्धि । पत्त-प्राप्त । ___ सामि-स्वामि । पाय-पूज्य ।
| सौ ही नमो-'सौं ह्रीं नमः 'यह झौं स्वाहा मंतेणं-'झौं स्वाहा'
मन्त्र । -वाले मन्त्रसे। सव्वासिव-दुरिय-हरणाणं- सव्वोसहि-पत्ताणं-सौषधि ना
सर्व उपद्रव और पापका हरण मक लब्धि प्राप्त करनेवालोंको। करनेवालोंको।
जिसके शरीरके सर्व-पदार्थ असिव-उपद्रव । दुरिय-पाप । ओषधिरूप हों उसे सर्वौषधिॐ संति- नमुकारो- श्रीशान्ति- लब्धिमान् कहते हैं।
नाथ भगवान्को ॐपूर्वक किया हुआ नमस्कार । ।
च-और। खेलोसहिमाइ-लद्धि-पत्ताणं
देइ-देते हैं। श्लेष्मौषधि आदि लब्धि प्राप्त करनेवालोंको।
| सिरि-श्रीको।
अर्थ-सङ्कलना-~
वि डोषधि, श्लेष्मौषधि, सौषधि आदि लब्धियाँ प्राप्त करनेवाले सर्व उपद्रव और पापका हरण करनेवाले, ऐसे श्रीशान्तिनाथ भगवान्को 'ॐ नमः', झौं स्वाहा' तथा 'सौं ही नमः' ऐसे मन्त्राक्षर-पूर्वक नमस्कार हो; ऐसा श्रीशान्तिनाथ भगवान्को किया हुआ नमस्कार जय और श्रीको देता है ॥ २-३ ॥
मूल
वाणी-तिहुयण-सामिणी-सिरिदेवी-जक्खराय-गणिपिडगा | गह-दिसिपाल-सुरिंदा, सया वि रक्खंतु जिणभत्ते ॥४।।
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