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संति - जिणचंदो- श्रीशान्तिनाथ | रक्खं-रक्षा। जिनेश्वर ।
मुणि-सुन्दरसुरि-थुय-महिमामज्झ वि-मेरी भी।
श्रीमुनिसुन्दरसूरिने जिनकी महिकरेउ-करें।
माकी स्तुति की है ऐसे । अर्थ-सङ्कलना
इस प्रकार श्रीमुनिसुन्दरसूरिने जिनकी महिमाकी स्तुति की है, ऐसे श्रीशान्तिनाथ जिनेश्वर सम्यग्दृष्टि देवोंके समूह सहित श्रीसंघकी और मेरी भी रक्षा करें।॥ १२ ॥
मूल
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इय 'संतिनाह-सम्मदिट्ठिय-रक्खं' सरइ तिकालं जो । सव्वोवद्दव-रहिओ, स लहइ सुह-संपयं परमं ॥१३॥ शब्दार्थइय-इस प्रकार।
जो-जो। संतिनाह-सम्मद्दिठ्ठिय - रक्खं- सवोवद्दव-रहिओ-सर्व उपद्रवोंसे ... शान्तिनाथ-सम्यग्दृष्टिक-रक्षा | रहित । (स्तोत्र) का।
स-वह। सरइ-स्मरण करता है । लहइ-प्राप्त करता है। तिकालं-तीनों काल, प्रातः काल, | सुह-संपयं-सुख सम्पदाको ।
मध्याह्न और सायङ्काल । | परमं-उत्कृष्ट । अर्थ-सङ्कलना
इस प्रकार 'शान्तिनाथ-सम्यग्दृष्टिक-रक्षा' (स्तोत्र) का जो तीनों काल स्मरण करता है, वह सर्व उपद्रवोंसे रहित होकर उत्कृष्ट सुख-सम्पदाको प्राप्त करता है ।।१३।।
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