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________________ ३९४ संति-सामि-पायाणं-पूज्य श्री- खेल-कफ । ओसहि ओषधि । शान्तिनाथ भगवान्को। ___ लद्धि-लब्धि । पत्त-प्राप्त । ___ सामि-स्वामि । पाय-पूज्य । | सौ ही नमो-'सौं ह्रीं नमः 'यह झौं स्वाहा मंतेणं-'झौं स्वाहा' मन्त्र । -वाले मन्त्रसे। सव्वासिव-दुरिय-हरणाणं- सव्वोसहि-पत्ताणं-सौषधि ना सर्व उपद्रव और पापका हरण मक लब्धि प्राप्त करनेवालोंको। करनेवालोंको। जिसके शरीरके सर्व-पदार्थ असिव-उपद्रव । दुरिय-पाप । ओषधिरूप हों उसे सर्वौषधिॐ संति- नमुकारो- श्रीशान्ति- लब्धिमान् कहते हैं। नाथ भगवान्को ॐपूर्वक किया हुआ नमस्कार । । च-और। खेलोसहिमाइ-लद्धि-पत्ताणं देइ-देते हैं। श्लेष्मौषधि आदि लब्धि प्राप्त करनेवालोंको। | सिरि-श्रीको। अर्थ-सङ्कलना-~ वि डोषधि, श्लेष्मौषधि, सौषधि आदि लब्धियाँ प्राप्त करनेवाले सर्व उपद्रव और पापका हरण करनेवाले, ऐसे श्रीशान्तिनाथ भगवान्को 'ॐ नमः', झौं स्वाहा' तथा 'सौं ही नमः' ऐसे मन्त्राक्षर-पूर्वक नमस्कार हो; ऐसा श्रीशान्तिनाथ भगवान्को किया हुआ नमस्कार जय और श्रीको देता है ॥ २-३ ॥ मूल वाणी-तिहुयण-सामिणी-सिरिदेवी-जक्खराय-गणिपिडगा | गह-दिसिपाल-सुरिंदा, सया वि रक्खंतु जिणभत्ते ॥४।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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