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________________ ३९३ s - म aa शब्दार्थसंतिकर-शान्ति करनेवालेको। भत्त-पालग-निव्वाणो - गरुड़संतिजिणं-श्रीशान्तिनाथ भग- कय-सेवं-भक्तजनोंके पालक, वान्को। निर्वाणीदेवी तथा गरुड-यक्षजग-सरणं - जगत्के जीवोंके द्वारा सेवित । शरणरूप। भत्त-भक्त। पालग-पालन करजप-सिरीइ-जय और थोके ।। नेवाले। निव्वाणी-निर्वाणीदायार-दातारको, देनेवालेको । देवी। गरुड-गरुड़ नामका समरामि-स्मरण करता हूँ, ध्यान यक्ष । कय-कृत । सेवधरता हूँ। सेवा । अर्थ-सङ्कलना____ जो शान्ति करनेवाले हैं, जगत्के जीवोंके लिए शरणरूप हैं, जय और श्रीके देनेवाले हैं तथा भक्तजनोंका पालन करनेवाले,निर्वाणीदेवी और गरुड़-यक्षद्वारा सेवित हैं, ऐसे श्रीशान्तिनाथ भगवान्का. मैं स्मरण करता हूँ, ध्यान करता हूँ॥१॥ मल-- ॐ सनमो विप्पोसहि-पत्ताणं संतिसामि-पायाणं । झौं स्वाहा मंतेणं सव्वासिव-दुरिय-हरणाणं ॥२॥ ॐ संति-नमुक्कागे, खेलोसहिमाइ-लद्धि-पत्ताणं ।। सौ ही नमो य सव्वोसहि-पत्ताणं च देह सिरिं ॥३॥ शब्दार्थॐ सनमो-ॐ नमः सहित । । विगुड्-विष्ठा । जिस लब्धि के विप्पोसहि-पत्ताणं-विग्रुडोषधि प्रभावसे विष्ठा सुगन्धित नामकी लधि प्राप्त करनेवा- होती है, उस लब्धिको लोंको। विपुडोषधि-लब्धि कहते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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