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शब्दार्थवाणी-तिहुयण-सामिणि-सिरि-! जक्खराय यक्षराय। गणि
देवी-जक्खराय-गणिपि-। पिडग-गणिपिटक। डगा-सरस्वती देवी, त्रिभुवन- गह-दिसिपाल - सुरिदा – ग्रह, स्वामिनी देवी, श्रीदेवी और दिक्पाल और देवेन्द्र । यक्षराज गणिपिटक।
सया-सदा । वाणी-सरस्वती देवी। तिहुयण- वि-ही। सामिणी-त्रिभुवन-स्वामिनी रक्खंतु-रक्षा करें।
देवी। सिरिदेवी-श्रीदेवी। जिणभत्ते -जिन-भक्तोंकी। अर्थ-सङ्कलना
सरस्वती, त्रिभुवनस्वामिनी,श्रीदेवी, यक्षराज गणिपिटक, ग्रह, दिक्पाल एवं देवेन्द्र सदा ही जिनभक्तोंकी रक्षा करें ॥४॥
मूल
रक्खंतु ममं रोहिणि-पन्नत्तो वज्जसिंखला य सया । वज्जंकुसि-चक्केसरि-नरदत्ता-कालि-महकाली ॥५॥ गोरी तह गंधारी, महजाला माणवी य वइरुट्टा । अच्छुत्ता माणसिआ, महमाणसिया उ देवीओ ॥ ६ ॥ शब्दार्थरक्खंतु-रक्षण करें। | वज्जंकुसि-चपकेसरि-नरदत्ताममं-मुझे, मेरा।
कालि-महकाली-वज्राङ्कुशी, रोहिणि-पन्नत्ती - रोहिणी और चक्र श्वरी, नरदत्ता, काली प्रज्ञप्ति ।
और महाकाली। वजसिंखला-वज्रशृङ्खला । गोरी-गौरी। य-और।
तह-तथा । सया-सदा ।
| गंधारी-गान्धारी।
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