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| موقت
३८२ अर्थ-सङ्कलना
और इस भूमण्डलपर अपने अपने स्थानपर रहे हुए साधु, साध्वी, श्रावक और श्राविकाओंके रोग, उपसर्ग, व्याधि, दुःख, दुष्काल और विषादके उपशमनद्वारा शान्ति हो ।। ११ ॥ मूल
(९) ॐ तुष्टि-पुष्टि-ऋद्धि-वृद्धि-माङ्गल्योत्सवाः सदा (भवन्तु) प्रादुर्भूतानि पापानि शाम्यन्तु, (शाम्यन्तु) दुरितानि, शत्रवः पराङ्मुखा भवन्तु स्वाहा ॥१२॥ शब्दार्थ
पापानि-पापकर्म । तुष्टि - पुष्टि - ऋद्धि - वृद्धि - शाम्यन्तु-शान्त हों, नष्ट हों।
माङ्गल्योत्सवाः-तुष्टि, पुष्टि, ( शाम्यन्तु-शान्त हों। ) ऋद्धि, वृद्धि, माङ्गल्य और | दुरितानि-भय, कठिनाइयाँ । अभ्युदय।
शत्रवः-शत्रुवर्ग । सदा-सदा।
पराङ्मुखाः-विमुख । (भवन्तु-हों।) प्रादुर्भूतानि - प्रादुर्भूत, उत्पन्न भवन्तु-हों। हुए।
| स्वाहा-स्वाहा। अर्थ-सङ्कलना
ॐ आपको सदा तुष्टि हो, पुष्टि हो, ऋद्धि मिले, वृद्धि मिले, माङ्गल्यको प्राप्ति हो और आपका निरन्तर अभ्युदय हो। आपके प्रादुर्भत पापकर्म नष्ट हों, भय-कठिनाइयाँ शान्त हों तथा आपका शत्रुवर्ग विमुख बने । स्वाहा ।। १२ ।।
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